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Wednesday, 8 March 2017

कि जो हो बेक़रार

जब कि पहलू से प्यार उठता है


दर्द    बे-इख़्तियार    उठता   है 


अब तलक भी  मज़ारे-मजनू से


नातवाँ  इक   ग़ुबार   उठता   है


है वगुला  गुबार  किसका  'मीर'


कि  जो  हो  बेक़रार  उड़ता  है !!

🎈🎈🎈🎋🎋🎋

तुमने देखा है

जामे  है  जी  नजात   के  ग़म  में 


ऐसी   जन्नत   गयी    जहन्नुम  में 


आप में हम नहीं तो क्या है अजब


दूर  उससे  रहा  है   क्या  हम  में 


बेख़ुदी  पर  न  'मीर'  की  जाओ


तुमने  देखा   है  और  आलम  में


Monday, 6 March 2017

फूले है जैसे साँस


फूल इस चमन के देखते क्या -क्या झड़े हैं हाय 


सैले-बहार    आँखों   से   मेरी   खां   है   अब


जिन्नो मलक जमीनों-फलक सब निकल गए 


बारे   गिराने  इश्कों-दिले  नातवां   है   अब


पेश  अज-दमे-सहर  मेरा रोना लहू का देख


फूले  है जैसे  सांस वही  यां समां  है अब !!

'मीर' साहब भी क्या


करते हैं जो कि जी में ठाने हैं 

खूबरु किसकी बात माने  हैं 

जा हमे उस गली में गिर रहना 

जोफ़ो -बेताकती    बहाने  हैं

पूछ अहले-तरब से शौक अपना

वे ही जाने जो  ख़ाक छाने  हैं

इश्क़  करते हैं  उस परीरू  से

'मीर' साहब भी क्या दिवाने हैं !!

🎸🎸🎸🎵🎵🎵

Sunday, 5 March 2017

करके इक ही सवाल


 जिसका खूबा ख्याल लेते है 

दिल कलेजा  निकाल लेते है

क्या नजरगाह कि शर्म से गुल

सर  गरेबां में  डाल  लेते  है

हैं गदा 'मीर' भी वले दो जहां

करके इक ही सवाल लेते हैं !!

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